मानवीय गुणों के संस्कारों से अनुप्राणित जीवन जीने की व्यवस्था संस्कृति
कहलाती है । विश्व परिवार ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना के साथ सब का हित चिन्तन
भारतीय संस्कृति का मूल आधार है । इसीलिए वैदिक ऋषि परंब्रह्म से प्रार्थना करते
हैं कि हे प्रभु ! हमें सब ओर से कल्याणकारी विचार प्राप्त हों -
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वत: |
हमारे लिए (न:) सभी ओर से (विश्वत:) कल्याणकारी (भद्रा:) विचार (क्रतव:) आयें (आयन्तु).
Let noble thoughts come to us from every side.
- Rig Veda, I-89-i
- Rig Veda, I-89-i
सर्वमंगल की कामना करते हुए ऋषि कहते हैं -
सर्वेभवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया: |
सर्वेभद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दु:खभाग भवेत् ||
अर्थात् समस्त प्राणि सुख शान्ति से पूर्ण हों, सभी रोग, व्याधि से मुक्त
रहें, किसी के भाग में कोई दुख न आए और सभी कल्याण मार्ग का दर्शन व अनुसरण करें ।सर्वेभद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दु:खभाग भवेत् ||
Courtesy: http://hp.gov.in
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