Thursday, March 29, 2012

जीने की कला ने पहुंचाया शीर्ष पर


प्रकाश हिन्दुस्तानी

सरलता श्री श्री रविशंकर की सबसे बड़ी पूँजी है। यही थाती उन्हें नागरिक समाज से लेकर संत समाज में समान रूप से आदर व सम्मान का पात्र बनाती है। हमारे दौर में जब कभी भी कोई संकट राष्ट्र व मानवता के सामने खड़ा हुआ, श्री श्री उसका हल तलाशने में जुट गए। फिलहाल लोकपाल मसले पर अपनी सक्रियता के लिए वह सुर्खियों में हैं।

रवि शंकर रत्नम समाजसेवी अन्ना हजारे के समर्थक और सहयोगी हैं। वह महर्षि महेश योगी के शिष्य थे। उन्होंने 26 साल की उम्र में 1982 में आर्ट ऑफ लिविंग की स्थापना की थी। आज इसकी शाखाएं 152 देशों में है। वर्ष 2010 में प्रतिष्ठित पत्रिका फोर्ब्स ने उन्हें भारत का पांचवां सबसे प्रभावशाली व्यक्ति बताया था। उन्होंने दलाई लामा के साथ जेनेवा में भी एक संस्था खोली है, जो गरीबों की मदद करती है। सितार वादक रवि शंकर ने एक बार उन पर आरोप लगाया था कि योगी रवि शंकर उनकी ख्याति का लाभ उठा रहे हैं, तब उनके शिष्यों ने उन्हें ‘श्री श्री रवि शंकर’ नाम दिया। अपने शिष्यों में वह ‘श्री श्री’ के नाम से ही पहचाने जाते हैं। उनकी संस्थाएं करोड़ों रुपये सेवा कार्यों पर खर्च करती हैं।
गंगा-यमुना के सफाई अभियान से भी श्री श्री जुड़े रहे हैं। योग क्रिया ‘सुदर्शन क्रिया’ को आजमाकर उसके माध्यम से लाखों लोगों को प्रभावित करने वाले ‘श्री श्री’ की सफलता के कुछ सूत्र:

बचपन को मत भूलो
आप कितने भी बड़े हो जाएं, मगर अपने बचपन को न भूलें। बचपन की सहजता, मासूमियत और ईमानदारी को कलेजे से लगाए रखें। इससे आप हमेशा तनावमुक्त और अपनत्व से भरे रह सकते हैं। श्री श्री अब भी अपने आप को बच्चा ही कहते हैं। ऐसा बच्चा, जो शरीर से बड़ा हो चुका है, लेकिन मन से पूरी तरह निश्छल है। अगर बचपन की कोई कटुता मन में है, तो उसे निकाल देने में ही भलाई होती है। अपने बचपन को याद करने के अलावा आप अपने आसपास के बच्चों से भी बहुत कुछ सीख सकते हैं।

सहजता ही अध्यात्म है
श्री श्री कहते हैं, मैंने जीवन में कुछ भी ऐसा नहीं किया है, जो सहज नहीं है या बनावटी है। बनावटीपन और आडंबर तो बोझ की तरह होते हैं, जिन्हें ढोना पड़ता है। मेरे लिए सहज रहना अध्यात्म का ही एक अंग है। यही मेरी जीवन शैली है। मैं सहज और सरल जीवन जीता हूं और इसी में खुश हूं। मेरी सलाह पर हजारों लोगों ने जीवन जीने का यही मार्ग चुना है और वे सभी इससे खुश हैं।

यथार्थ को स्वीकारें
सहज-सरल जीवन जीने का तरीका यह है कि ‘एक्सेप्ट द सिचुएशन एज इट इज।’ इसका मतलब यह नहीं है कि आप गलत बातों का समर्थन करें, बल्कि इसका अर्थ यह है कि आप गलत बात की तह में जाने की कोशिश करें और उसे दूर करें। अगर आप किसी समस्या में फंस गए हैं, तो वहीं रहना यथार्थ नहीं है, बल्कि आप हालात को समझकर समस्या से निजात पाएं, तो आप ज्यादा सहज जीवन जी सकते हैं।

हंसो, पर फंसो मत
हमेशा हंसने यानी प्रसन्न रहने की दशा तभी आ सकती है, जब आप कहीं भी फंसे न हों। हमेशा विवादों से दूर रहने की कोशिश करनी चाहिए। अगर विवाद की दशा आ ही जाए, तो जितनी जल्दी हो सके, उससे बाहर निकालने की कोशिश करें। अपनी ऊर्जा का हमेशा सकारात्मक उपयोग आप तभी कर सकते हैं, जब आप तनावरहित और प्रसन्नचित्त हों।

शाश्वत कुछ भी नहीं

जीवन का कोई भी नियम शाश्वत नहीं है। दूध पीना अच्छा होता है, पर हमेशा अच्छा नहीं। कई रोगी दूध पीकर और बड़े रोगी हो सकते हैं। जहर किसी की जान ले सकता है, लेकिन जहर से ही कई जीवन रक्षक दवाइयां बनती हैं। डीडीटी का आविष्कार करने वाले वैज्ञानिक को नोबेल प्राइज दिया गया था, आज डीडीटी दुनिया के अधिकांश देशों में प्रतिबंधित है। कोई भी बात हर व्यक्ति के लिए और हर काल में अच्छी ही हो, यह जरूरी नहीं। इसलिए बात-बात पर शोक मनाना अच्छी आदत नहीं है।

मुफ्त कुछ भी नहीं

प्रकृति ने हमें हमारी सबसे बहुमूल्य वस्तु मुफ्त में दी है ऑक्सीजन, लेकिन हम उसका मोल कहां समझ पाते हैं? कोई भी वस्तु मुफ्त में दो, तो उसका महत्व लोग नहीं समझते, इसलिए शुल्क लेना जरूरी है, और उस आय से वही वस्तु उन लोगों को मुफ्त उपलब्ध कराना जरूरी है, जिसकी उन्हें सख्त जरूरत हो। यह व्यवसाय नहीं, समाज का हित करने के लिए है। इसीलिएं ‘आर्ट ऑफ लिविंग’ के लिए शुल्क रखा गया है।

नई तकनीक अपनाएं

नई तकनीक केवल उपकरणों के मामले में ही नहीं, जीवन जीने के बारे में भी अपनानी चाहिए, तभी बेहतर जीवन जी सकते हैं। हम नई तकनीक वाली कार और नई तकनीक के फोन पर ही अटक जाते हैं और नई तकनीक से सांस लेने के बारे में सोचने का वक्त ही नहीं है हमारे पास। हम दूसरों की खुशी में अपनी खुशी पाने की तकनीक भी खोते जा रहे हैं, जबकि हमें वैसी तकनीक तलाशनी चाहिए, जो हमें सुख प्रदान करे।

संगीत शक्ति देता है
संगीत में हमें शक्ति देने और नई ऊर्जा से भर देने की अपार ताकत मौजूद है, लेकिन हमने गाना-बजाना और नृत्य करना कम कर दिया है। मेरी ऊर्जा का एक खास स्रोत संगीत है, और कई तरह का संगीत मैं सुनता हूं, जिनमें से कई तो मुझे समझ में भी नहीं आता, लेकिन फिर भी आनंद देता है। संगीत में एक और शक्ति है और वह शक्ति है एकात्मकता पैदा करने की।

हमारे जीवन का लक्ष्य है आनंद की प्राप्ति और अहिंसा तथा शांति के बिना वह संभव नहीं है। हमारे पास जो है, उससे संतुष्ट हुए बिना हम हर तरीके से साधन जुटाने में लगे हैं। और यह हमारे दुख का कारण बन जाता है। मैंने तय कर लिया है कि मैं खुश रहूंगा और मैं खुश हूं। आप भी यह करके देखिए।

(लाइव हिंदुस्तान के सौजन्य से) 

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