हम सब ऐसा गहरा विश्राम चाहते हैं जो हमें तरोताजा कर दे ताकि जागने पर
हम उपयोगी हो सकें। लेकिन तुम कब विश्राम कर सकते हो? तभी जब तुमने अन्य
सभी क्रियाकलापों को बन्द कर दिया हो। जब तुम इधर-उधर घूमना, काम करना,
सोचना, बात करना, देखना, सुनना, सूंघना और स्वाद लेना आदि सभी ऐच्छिक
क्रियाकलापों को बन्द करते हो तभी तुम्हें विश्राम मिलता है या नींद आती
है। सुषुप्ति में तुम्हारे साथ केवल अनैच्छिक क्रियाएं ही शेष रहती हैं
जैसे सांस लेना, हृदय धड़कना, पाचन क्र्तिया और रक्त संचार आदि। परन्तु
यह भी पूर्ण विश्राम नहीं है। पूर्ण विश्राम ध्यान में होता है। और ध्यान
तभी होता है, जब मन स्थिर हो जाता है।
इस मन को स्थिर कैसे करें? जीवन के उद्देश्य को समझकर और पूरी तरह
केन्द्रित होकर। केन्द्रित रहना यानी हर पल में तृप्त रहना, तटस्थ रहना।
यदि तुम्हें अपनी वांछित वस्तु मिल जाय तब भी तुम व्यग्र रहते हो और यदि
वह तुम्हें नहीं मिलती हैं तब भी तुम व्यग्र रहते हो! प्रत्येक इच्छा मन
में ज्वर उत्पन्न करती है। इस स्थिति में ध्यान नहीं हो सकता है।
जब तुम ध्यान के लिए बैठना चाहते हो, तो हर चीज को छोड़ दो। तुम जिस भी
आनन्द का जीवन में अनुभव करते हो, वह तुम्हारे अन्तरतम की गहराइयों से
आता है। यह तभी आता है, जब तुम अपनी सारी पकड़ छोड़ देते हो और स्थिर हो
जाते हो। यही ध्यान है। वास्तव में ध्यान कोई क्र्तिया नहीं है; यह कुछ
भी न करने की कला है। ध्यान की विश्रान्ति गहरे से गहरे नींद से भी गहरी
है, क्योंकि ध्यान में तुम सभी इच्छाओं से मुक्त हो जाते हो। जब तुम गहरे
ध्यान से बाहर आते हो, तब तुम बहुत गतिशील होते हो और बेहतर काम कर सकते
हो। तुम्हारा विश्राम जितना गहरा होगा, तुम्हारे कर्म उतने ही अधिक
गतिशील रहेंगे।
ध्यान भूतकाल तथा भूतकाल की घटनाओं के सभी क्रोध या तनाव से मुक्ति पाना
है और भविष्य की सभी योजनाओं और कामनाओं का त्याग करना है। योजना बनाना
तुमको अपने अन्दर गहरी डुबकी लगाने से रोकता है। ध्यान इस क्षण को पूर्णत
स्वीकार करना है और प्रत्येक क्षण को पूरी गहराई के साथ जीना है। केवल इस
बात की समझ और कुछ दिनों के निरन्तर ध्यान का अभ्यास तुम्हारे जीवन की
गुणवत्ता को बदल सकता है।
जीवन चेतना के तीन अवस्था - जाग्रत्, सुषुप्ति और स्वप्न का सबसे अच्छा
उदाहरण यह प्रकृति है। प्रकृति सोती है, जागती है और सपने देखती है!
अस्तित्व में यह एक शानदार स्तर पर हो रहा है और मानव शरीर में एक अलग
स्तर पर। जागृति और सुषुप्ति सूर्योदय और अन्धकार की भांति है। स्वप्न उन
दोनों के बीच में गोधूलि बेला के समान है और ध्यान अंतरिक्ष में एक उड़ान
की तरह से है, जहां कोई भी सूर्योदय, सूर्यास्त नहीं है, कुछ भी नहीं,
सिर्फ बोध है।
http://epaper.amarujala.com/pdf/2011/06/18/20110618a_014169.pdf
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