तमाम धर्मो में ध्यान का महत्व बहुत शुरू से ही रहा है। सभी धर्मो में ध्यान की कुछ विधियां प्रचलित रही हैं। बौद्ध धर्म में तो ध्यान का केंद्रीय महत्व है। महात्मा बुद्ध ने ज्ञान को प्राप्त करने के लिए ध्यान ही किया था। बुद्ध धर्म का स्थविर यान या हीनयान संप्रदाय ध्यान पर ही आधारित है। महायान में भी ध्यान संप्रदाय चला, जो जापान में 'जेन' के नाम से विख्यात हुआ।
भारत के षड्दर्शनों में से एक 'योग' में भी ध्यान का बहुत महत्व है। ध्यान को धार्मिक रूढ़ि मानकर काफी वक्त तक नए जमाने के लोग इस पर ध्यान नहीं देते थे, लेकिन पिछले कुछ बरस में यह पाया गया कि नए जमाने की 'लाइफ स्टाइल' बीमारियों में ध्यान काफी उपयोगी है।
कई शोधों में ध्यान के फायदों के सुबूत मिले हैं। पिछले दिनों अमेरिका में हुए एक शोध ने यह बताया कि ध्यान से दिमाग में कुछ फायदेमंद संरचनात्मक बदलाव होते हैं। इस शोध में आठ हफ्ते तक कुछ लोगों को नियमित रूप से ध्यान कराया गया, जो कुछ विपश्यना जैसा ध्यान था। शुरू में इन लोगों के दिमाग के एमआरआई स्कैन किए गए और आठ हफ्ते बाद फिर एमआरआई से जांच की गई।
जांच में पता चला कि ध्यान करने वाले के दिमाग में हिप्पोकैंपस नामक भाग में ग्रे सेल की संख्या काफी बढ़ गई। हिप्पोकैंपस का संबंध याददाश्त और सीखने की प्रक्रिया से है यानी उनकी याददाश्त और सीखने की शक्ति बढ़ गई। यह भी देखा गया कि तनाव से संबंधित भाग, जिसे एमाइग्डाला कहते हैं, उसमें ग्रे सेल की संख्या में कमी आ गई थी।
जिन लोगों ने ध्यान नहीं किया था, उनके दिमाग में ऐसे कोई परिवर्तन नहीं देखे गए। 2009 के एक शोध से पता चला कि ध्यान से हृदय रोग से पीड़ित लोगों का ब्लड प्रेशर कम हुआ और 2007 का एक शोध बताता है कि ध्यान करने से एकाग्रता की क्षमता बढ़ती है। 2008 में हुए एक शोध से एक और दिलचस्प बात सामने आई।
शोधकर्ताओं ने पाया कि जब ध्यान करने वालों ने किसी व्यक्ति को तकलीफ में देखा, तो उनके दिमाग के टेम्पोरल पेराइटल संधि स्थानों पर सामान्य से ज्यादा हलचल हुई, इसका अर्थ यह है कि ध्यान करने वालों में दूसरों के प्रति संवेदनशीलता और सहानुभूति भी बढ़ जाती है।
ये नतीजे बताते हैं कि ध्यान करना खुद के स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा है और दूसरे के लिए भी यानी ध्यान सिर्फ हमारी सेहत ही नहीं सुधारता, बल्कि हमें बेहतर इनसान बनने में भी मदद करता है। कई अस्पतालों में हुए शोध यह बताते हैं कि नियमित ध्यान करने वाले मरीज बीमारियों से जल्दी उबरते हैं। यूं हम मान लेते हैं कि आधुनिक जीवन में तनाव ज्यादा है, लेकिन प्राचीन काल में तो जीवन ज्यादा कठिन था। प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा कम थी, चिकित्सा विज्ञान भी उतना विकसित नहीं था, युद्ध, महामारी आदि के खतरे ज्यादा थे।
असुरक्षा और अनिश्चितता तब ज्यादा थी, लेकिन तब मनुष्य ने अपने अंदर झांककर अपनी आत्मा में शांति और ठहराव का सतत झरना खोजा। हमें आधुनिक समय में ऐसा लगा कि विज्ञान और तकनीक ने हमारी काफी सारी समस्याएं हल कर दी हैं, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं हुआ, जीवन में तनाव और बढ़ गया। अब हम समझ रहे हैं कि अपनी प्यास को बुझाने के लिए हमें उसी झरने तक जाना होगा। यह भी विज्ञान ही बता रहा है कि ध्यान पर हमें ध्यान देना चाहिए।
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