Monday, January 31, 2011

Inspiring article by Sri Ravi Shankar पंखों को खोलते हुए

हर वर्ष हम नववर्ष की शुरुआत दूसरों को खुशी और समद्धि की शुभ कामनाएं देकर करते हैं। समृद्धि का सही लक्षण क्या है? समृद्धि का लक्षण मुसकराहट है। समृद्धि का लक्षण संतोष है। समृद्धि का चिह्न है- मुक्ति, मुस्कान तथा जो कुछ भी अपने पास हो, उसे निर्भय होकर आसपास के लोगों के साथ बांटने की मन:स्थिति। समृद्धि का लक्षण यह आस्था और आत्मविश्वास है कि जो कुछ भी मेरी आवश्यकता है वह मुझे मिल जाएगा।

2011 का स्वागत एक वास्तविक मुसकराहट के साथ करें, एक ऐसी मुसकराहट, जो भीतर से हो। कैलेंडर के पन्ने पलटने के साथ-साथ हम अपने मन के पन्नों को भी पलटते जाएं। प्राय: हमारी डायरी स्मृतियों से भरी हुई होती है। आप देखें कि आपके भविष्य के पन्ने बीती हुई घटनाओं से न भर जाएं। बीते हुए समय से कुछ सीखें, कुछ भूलें और आगे बढ़ें।

आप लोभ, घृणा, द्वेष तथा ऐसे अन्य सभी दोषों से मुक्त होने की कोशिशकरें। यदि मन इन सभी नकारात्मकताओं में लिप्त है, तो वह खुश नहीं रह सकता। समझें कि नकारात्मक भावनाएं भूतकाल की वजह से हैं। वर्तमान जीवन के अनुभव को आपका भूतकाल नष्ट न करने पाए। बीते हुए समय को क्षमा नहीं कर पाएंगे, तो आपका भविष्य दुखद हो जाएगा।

पिछले साल, जिनके साथ आप की अनबन रही है, इस साल आप उनके साथ सुलह कर लें। भूत को छोड़कर नया जीवन शुरू करने का संकल्प करें।

इस बार नववर्ष के आगमन पर हम इस पृथ्वी के लिए शांति और संपन्नता के संकल्प के साथ सभी को शुभकामनाएं दें। आर्थिक मंदी, आतंकवाद की छाया, बाढ़ तथा अकाल के इस समय में और अधिक नि:स्वार्थ सेवा करें। इस संसार में हिंसा को रोकना ही हमारा प्राथमिक उद्देश्य है। समाज के लिए कुछ अच्छा करने का संकल्प लें, जो पीड़ित हैं उन्हें धीरज दें।

जब भी आप लोगों के लिए उपयोगी हुए, तो उसका पुण्य भी आपको मिला। वह लुप्त नहीं होता। आपके द्वारा किए गए अच्छे कर्म हमेशा पलट कर आपके पास वापस आएंगे। आज आपके पास यह पूरा विश्व एक परिवार जैसा है। यह हमें महसूस करना है कि हर कोई आपके ही परिवार का हिस्सा है। पूरे राष्ट्र के लिए जिम्मेदारी लें। फिर कोई दुख नहीं होगा।

जीवन का आध्यात्मिक पहलू हमें संपूर्ण विश्व और संपूर्ण मानवता के प्रति और अधिक अपनापन, उत्तरदायित्व, संवेदना तथा सेवा का भाव विकसित करता है। सच्चा आध्यात्मिक पहलू जाति, धर्म तथा राष्ट्रीयता की संकुचित सीमाओं को तोड़ देता है तथा सभी में व्याप्त जीवन ऊर्जा से अवगत कराता है।

अपनी आंखों को खोलें और देखें कि आपको कितना कुछ मिला हुआ है। इस नववर्ष पर यह ध्यान दें कि आपको क्या मिला है। इस पर नहीं कि आपको क्या नहीं मिला। यह कृतज्ञता लाता है। आप जितने कृतज्ञ होंगे, उतना ही अधिक आपको मिलेगा। इसके विपरीत आप जितनी शिकायत करेंगे, उतना ही आपसे वापस ले लिया जाएगा। यीशु मसीह ने भी यही कहा था कि जिसके पास है, उनको और अधिक मिलेगा और जिनके पास नहीं हैं, उनके पास जो भी है, वह उनसे ले लिया जाएगा। इसका यही अर्थ है।

जो हम से कम संपन्न हैं, उनके पास पहुंचें और आभार की भावना के साथ उनकी सहायता करें। आप यह अनुभव करेंगे कि जब आप नि:स्वार्थ सेवा करते हैं, तो आपको कितना अधिक संतोष मिलता है। इससे आपको यह भी पता चलेगा कि आपकी अपनी समस्या बहुत छोटी है। बार-बार मन में कहना कि 'मुझे क्या मिलेगा' मानसिक अवसाद का सबसे बड़ा कारण है। 'मुझे क्या मिलेगा' समृद्धि की कमी का लक्षण है।

इस वर्ष पंछी की तरह मुक्त हो जाएं। अपने पंखों को खोलें और उड़ना सीखें। इसको स्वयं अपने भीतर अनुभव करना है। और कुछ भी नहीं। यदि आप अपने को बंधन में महसूस करते हैं, तो फिर आप बंधन में ही रहोगे। मुक्त हो जाएं। आप अपनी स्वतंत्रता को कब महसूस करेंगे। मरने के बाद? अभी इस क्षण मुक्त हो जाएं। बढ़कर तृप्त हो जाएं। कुछ समय ध्यान और सत्संग में बैठें। यह आपके मन को शांत तो करता ही है, साथ ही संसार की चुनौतियों का सामना करने के लिए आपकी चेतना को आंतरिक बल भी देता है।

जब मन विश्राम करता है, तब बुद्धि तीक्ष्ण हो जाती है। जब मन आकांक्षा, ज्वर या इच्छा जैसी छोटी-छोटी चीजों से भरा हो, तब बुद्धि क्षीण हो जाती है। और जब बुद्धि तथा ग्रहण क्षमता तीक्ष्ण नहीं होती, तब जीवन को पूर्ण अभिव्यक्ति नहीं मिलती। नए विचार नहीं आते। तथा हमारा सामर्थ्य दिन-प्रतिदिन कम होने लगता है। इस ज्ञान से हम अपने छोटे मन के दायरे से बाहर कदम निकाल सकते हैं और यह कदम जीवन की कई समस्याओं का समाधान देगा। केंद्रित रहने से हमेशा खुशी पास रहती है। इसी शांति से प्रतिभाएं उभरती हैं। सहज ज्ञान मिल जाता है। सुंदरता आ जाती है। शांति आती है। प्रेम प्रकट होता है। समृद्धि आती है।

 

Courtesy: www.amarujala.com अमर उजाला, देहरादून, शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

ध्यान का विज्ञान Dainik Hindustan 310111

तमाम धर्मो में ध्यान का महत्व बहुत शुरू से ही रहा है। सभी धर्मो में ध्यान की कुछ विधियां प्रचलित रही हैं। बौद्ध धर्म में तो ध्यान का केंद्रीय महत्व है। महात्मा बुद्ध ने ज्ञान को प्राप्त करने के लिए ध्यान ही किया था। बुद्ध धर्म का स्थविर यान या हीनयान संप्रदाय ध्यान पर ही आधारित है। महायान में भी ध्यान संप्रदाय चला, जो जापान में 'जेन' के नाम से विख्यात हुआ।

भारत के षड्दर्शनों में से एक 'योग' में भी ध्यान का बहुत महत्व है। ध्यान को धार्मिक रूढ़ि मानकर काफी वक्त तक नए जमाने के लोग इस पर ध्यान नहीं देते थे, लेकिन पिछले कुछ बरस में यह पाया गया कि नए जमाने की 'लाइफ स्टाइल' बीमारियों में ध्यान काफी उपयोगी है।

कई शोधों में ध्यान के फायदों के सुबूत मिले हैं। पिछले दिनों अमेरिका में हुए एक शोध ने यह बताया कि ध्यान से दिमाग में कुछ फायदेमंद संरचनात्मक बदलाव होते हैं। इस शोध में आठ हफ्ते तक कुछ लोगों को नियमित रूप से ध्यान कराया गया, जो कुछ विपश्यना जैसा ध्यान था। शुरू में इन लोगों के दिमाग के एमआरआई स्कैन किए गए और आठ हफ्ते बाद फिर एमआरआई से जांच की गई।

जांच में पता चला कि ध्यान करने वाले के दिमाग में हिप्पोकैंपस नामक भाग में ग्रे सेल की संख्या काफी बढ़ गई। हिप्पोकैंपस का संबंध याददाश्त और सीखने की प्रक्रिया से है यानी उनकी याददाश्त और सीखने की शक्ति बढ़ गई। यह भी देखा गया कि तनाव से संबंधित भाग, जिसे एमाइग्डाला कहते हैं, उसमें ग्रे सेल की संख्या में कमी आ गई थी।

जिन लोगों ने ध्यान नहीं किया था, उनके दिमाग में ऐसे कोई परिवर्तन नहीं देखे गए। 2009 के एक शोध से पता चला कि ध्यान से हृदय रोग से पीड़ित लोगों का ब्लड प्रेशर कम हुआ और 2007 का एक शोध बताता है कि ध्यान करने से एकाग्रता की क्षमता बढ़ती है। 2008 में हुए एक शोध से एक और दिलचस्प बात सामने आई।

शोधकर्ताओं ने पाया कि जब ध्यान करने वालों ने किसी व्यक्ति को तकलीफ में देखा, तो उनके दिमाग के टेम्पोरल पेराइटल संधि स्थानों पर सामान्य से ज्यादा हलचल हुई, इसका अर्थ यह है कि ध्यान करने वालों में दूसरों के प्रति संवेदनशीलता और सहानुभूति भी बढ़ जाती है।

ये नतीजे बताते हैं कि ध्यान करना खुद के स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा है और दूसरे के लिए भी यानी ध्यान सिर्फ हमारी सेहत ही नहीं सुधारता, बल्कि हमें बेहतर इनसान बनने में भी मदद करता है। कई अस्पतालों में हुए शोध यह बताते हैं कि नियमित ध्यान करने वाले मरीज बीमारियों से जल्दी उबरते हैं। यूं हम मान लेते हैं कि आधुनिक जीवन में तनाव ज्यादा है, लेकिन प्राचीन काल में तो जीवन ज्यादा कठिन था। प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा कम थी, चिकित्सा विज्ञान भी उतना विकसित नहीं था, युद्ध, महामारी आदि के खतरे ज्यादा थे। 

असुरक्षा और अनिश्चितता तब ज्यादा थी, लेकिन तब मनुष्य ने अपने अंदर झांककर अपनी आत्मा में शांति और ठहराव का सतत झरना खोजा। हमें आधुनिक समय में ऐसा लगा कि विज्ञान और तकनीक ने हमारी काफी सारी समस्याएं हल कर दी हैं, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं हुआ, जीवन में तनाव और बढ़ गया। अब हम समझ रहे हैं कि अपनी प्यास को बुझाने के लिए हमें उसी झरने तक जाना होगा। यह भी विज्ञान ही बता रहा है कि ध्यान पर हमें ध्यान देना चाहिए।

http://www.livehindustan.com/news/editorial/subeditorial/57-116-156461.html